स्वर्णिम पल
Thursday, November 1, 2012
मेरी मनोकामना
हे परम पिता!
इस संसार में प्रेम कि वर्षा करो,
कि...
संसार टुकड़ों में विभाजित न हो,
और घर में विभाजन की दीवारें न हो,
कि...
सब जन सिर ऊंचा रख कर जी सकें,
कि...
सोच पर किसी का अंकुश न हो,
कि...
ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा की स्वतंत्रता हो
कि...
सत्य का आचरण हो, शब्द सच्चाई की गहराइयों से निकलें,
कि...
निपुणता की प्राप्ति के लिए अथक प्रयास किया जाये,
कि..
रूढीगत परम्पराओं की जकड़ से समाज की रक्षा हो,
स्पष्ट कारणों की धारा
अपना रास्ता खोकर निराशा के मरुस्थल
में न भटक जाये,
कि...
विचारों का दृष्टिकोण अभिव्यक्ति और कर्तव्यों की
स्वतंत्रता के स्वर्ग की ओर अग्रसरित हो सके,
ओ परम पिता!
संसार में सर्वत्र प्रेम कि वर्षा हो.
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