Thursday, November 1, 2012

मेरे अंतर्मन से निकले, आकुल करते मेरे गीत...


मेरे अंतर्मन से निकले,
स्वतंत्र विहग के पंखों जैसे 

फैल रहा है स्वर संगीत,
आकुल करते मेरे गीत,

विश्वपारावार गगन में 
लहरों जैसे लहरें गीत ,

इतना साहस नहीं है मुझमें,
तुम तक पहुँच सकूँ मैं कैसे 

गीतों के पंख ही छू कर,
तव चरण रज लूँगा,मीत!

तुम जब गाने को कहते हो, 
तुम्हें सुनाता हूँ हे मीत!
  
मेरा मन गर्वित हो जाता,
तुम्हें जब भाता मेरा गीत

तुमको सन्मुख पाकर मेरे
नैन अश्रु जल छलकें शीत,

परम आनंद मुझे मिलता है,
दुःखदर्द पिघलें बन मृदु गीत.   

खुश हो नशे में झूम रहा हूँ,
स्वयं को भूला, भूले गीत,

ईश सम तुम  मित्र हो प्यारे,
तुम्हें पुकारूँ प्यारे मीत.





  

मेरी मनोकामना


हे परम पिता!
इस संसार में प्रेम कि वर्षा करो,
कि...
संसार टुकड़ों में विभाजित न हो,
और घर में विभाजन की दीवारें न हो,
कि...
सब जन सिर ऊंचा रख कर जी सकें,
कि...
सोच पर किसी का अंकुश न हो,
कि...
ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा की स्वतंत्रता हो
कि...
सत्य का आचरण हो, शब्द सच्चाई की गहराइयों से निकलें,
कि...
निपुणता की प्राप्ति के लिए अथक प्रयास किया जाये,
कि..
रूढीगत परम्पराओं की जकड़ से समाज की रक्षा हो,
स्पष्ट कारणों की धारा
अपना रास्ता खोकर निराशा के मरुस्थल
में न भटक जाये,
कि...
विचारों का दृष्टिकोण अभिव्यक्ति और कर्तव्यों की
स्वतंत्रता के स्वर्ग की ओर अग्रसरित हो सके,
ओ परम पिता!
संसार में सर्वत्र प्रेम कि वर्षा हो.